मंगलवार, 2 जुलाई 2013

शर्मशार हुई दिल्ली


राजधानी दिल्ली में फिर से नाबालिग के साथ गैंगरेप की शर्मनाक घटना ने प्रशासन को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है और पूछा है आखिर कब तक...देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर शर्मसार हो गई ..,देश की राजधानी दिल्ली में फिर नाबालिग से बलात्कार की घिनौनी वारदात सामने आई है। यह बलात्कार पांच साल की बच्ची से हुआ है। एक तरफ पूरे देश में नवरात्रि के मौके पर कन्या जगह-जगह कन्या पूजन हो रहा है, जिन्हें जिमाया जाता है अब बलात्कार का निशाना उन् कन्याओ को बनाया जा रहा है जिन होने अभी कुछ नहीं देखा ..आज जब उन् कन्याओं की पूजा की जा रही है तो ऐसो खबर सुन कर दिल दहल जाता है ... ।नवरात्र के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन का विधान होता है. भारत में जहां एक तरफ कन्या भ्रूण हत्या और महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं अपने चरम पर हैं ...ये बेटियों तो विसुद रूप से पैदा नही होने दी गयी या पैदा होने के बाद जिंदगी की उमंगो से इन्हे महरूम कर दिया गया । लेकिन दिल्ली में दिल दहलाने वाली घटना में एक कन्या को कैद कर एक दरिंदे ने उसके साथ बलात्कार किया। पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर इलाके में किराये पर रहने वाले एक युवक ने पांच साल की मासूम से लगातार दो दिनों तक रेप किया। च्ची की हालत फिलहाल गंभीर है। डॉक्टरों ने बच्ची के पेट से एक मोमबत्ती और एक शीशी भी निकाली है।बच्ची के साथ आरोपी किस दरिंदगी से पेश आया इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसे ब्लेड मारकर मारने की कोशिश भी की गई। फिलहाल मासूम अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रही है। इस बीच बीते 24 घंटे में दिल्ली में तीन बलात्कार की वारदात सामने आई है। न्यू अशोक नगर इलाके में तीन युवकों ने स्कूल जा रही 15 साल की लड़की के साथ गैंगरेप किया। दूसरी तरफ नानकपुरा में नेपाली मूल की लड़की ओवरब्रिज के पास अर्धनग्न हालत में पाई गई और उसके साथ भी रेप किया गया। जिस भारतवर्ष में कन्या को देवी के रूप में पूजा जाता है, वहां आज सर्वाधिक अपराध कन्याओं के प्रति ही हो रहे हैं. ..यूं अब पीड़ित बच्ची के पिता की एक ही गुहार है। उनकी बच्ची की ऐसी हालत करने वाले को कड़ी से कड़ी सजा मिले। मालूम हो कि दिल्ली के वसंतकुंज गैंगरेप के बाद देश में जो गुस्सा फूटा था उसके बाद सरकार ने कानून में बदलाव कर उसे और कड़ा बनाने की कोशिश की, लेकिन ऐसा लगता है कि सख्त कानून भी बलात्कार को रोकने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। फिलहाल सब यही दुआ कर रहे हैं कि बच्ची की जान बच जाए।

प्रकृति का तांडव

अब देखो प्रकृति का तांडव....प्रकृति हमसे बातें करना चाहती है. वह हमें दुलारना चाहती है, अपनी गोद में खिलाना चाहती है. उसने हमें क्या नहीं दिया, वर्षों से वह हमारी सेवा कर रही है, लेकिन हमने उसे क्या दिया?उत्तराखंड में प्रकृति की भीषण त्रासदी ने क्षेत्र का जनजीवन बुरी तरह से तबाह कर दिया है. मौतों का कोई आंकड़ा तो अभी सामने नहीं आ पाया है लेकिन इस आपदा में जान गंवाने वालों की संख्या का अनुमान हज़ारों में लगाया जा रहा है. न जाने कितने लोग अपनों को खोकर अपना सब कुछ गंवा बैठे हैं. न सिर्फ लोगों के सर से छत उठ गयी है बल्कि आज उनको खाने-पीने के भी लाले पड़े हुए हैं.आधुनिकता और विकास के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड किया... जंगलों को काटा .. नदियों को प्रदूषित किया.. बांध बनाकर उनकी अविरल धारा को रोकने की चेष्टा की... हमेशा प्रकृति के साथ अधोषित युद्ध किया...चार दिन की इस गुस्सैल बारिश ने कम से कम यह तो बता ही दिया है कि प्रकृति और पर्यावरण से छेड़छाड़ करोगे, तो कहीं के नहीं रहोगे। प्रकृति के प्रकोप का ऐसा मंजर मैने जीवन में नहीं देखा था..चूंकि अब स्थितियां बदल चुकी हैं, प्रकृति के प्रति हमारा व्यवहार और बदले में प्रकृति की चाल भी बिगड़ चुकी है, उत्तरकाशी में तीन साल पहले आई कुदरती आपदा के जख्म और निशान अभी तक बाकी हैं, सरकारी तंत्र आज तक उन ठिकानों को दुरुस्त नहीं कर पाया है। प्रकृति का प्रकोप नए-नए रास्ते बना रहा है, लेकिन उससे निपटने का हमारा तंत्र दिन-प्रतिदिन सुन्न होता जा रहा है।यों तो उत्तराखंड के लगभग हर इलाके में बरसात का कहर बरपा है, मानसून की शुरुआत में ही बारिश ने उत्तराखंड में जो तबाही मचाई उसे देखकर पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई है। ।उत्तराखंड के अधिकतर इलाकों में बिजली परियोजनाएं चल रही हैं। यही नहीं प्राकृतिक संसाधन से राज्य का विकास करने के अंधे लालच में इस पहाड़ी प्रदेश में अंधाधुंध खनन चल रहा है। दुर्भाग्य से अधिकतर खनन का काम बाहरी ठेकेदार चला रहे हैं जिन्हें पहाड़ों की प्रकृति का कुछ भी पता नहीं। अब तो प्रकृति के साथ खिलवाड बंद करो .पहाड़ों में वन क्षेत्र भी कम हुआ है, जिसकी वजह से भू-स्खलन होता आया है। अवैध खनन ने भी पहाड़ों के भौगौलिक आधार को प्रभावित किया है। पर्यावरण और विकास के बीच एक संतुलन जरूर बिठाया जाना चाहिए, ताकि प्रकृति को रौद्र रूप धारण न करना पड़े। पहाड़ों में इस तरह के विनाश से न केवल विकास का पहिया रुकता है, विकास के नाम पर की गई तरक्की काफी पिछड़ जाती है।.राज्य में प्राकृतिक आपदा के कहर, भारी वर्षा, बादल फटने व भूस्खलन एवं बाढ़ से जनजीवन बुरी तरह तबाह हो चुका है.